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कहानी मैं सबसे पहले पढ़ जाता था। किताब खरीदने के बाद मेरी निगाहें यदि उसमें कुछ खोजतीं थीं तो केवल कहानी। कविताएं भी आकर्षित करती थी लेकिन अधिकतर समझ में नहीं आती थीं इसलिए उन्हें पढ़ने में रुचि नहीं होती … Continue reading →
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कथाकार शिवमूर्ति का उपन्यास “आखिरी छलांग” पढने के बाद मन में उठे कुछ विचार – हिंदी के कहानीकारों और कवियों का यदि सर्वे किया जाए तो पाया जाएगा कि अधिकतर रचनाकार गांव की पृष्ठ भूमिसे हैं या थे। लेकिन इसी … Continue reading →
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हमारे समय के बेहद ज़रूरी किस्सागो शिवमूर्ति जी पर लिखा विवेक मिश्र का यह आलेख लमही पत्रिका के शिवमूर्ति अंक में छपा है. अपनी मँड़ईया के ‘शिव’ राजा एक रचना, उसका रचनाकार और उस रचनाकार का जीवनवृत्त बाहर से देखने … Continue reading →
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।। शिवमूर्ति का वशीकरण और ‘लमही‘ ।। मूलत: कथा साहित्य में प्रेमचंद के उच्चादर्शों को लेकर स्थापित लमही नेअपने अब तक की साहित्यकारिता में अनेक विशेषांक और साधारणांकसंजोए हैं, किन्तु हाल ही में ग्रामीण पृष्ठ भूमि के अनूठे कथाकार शिवमूर्तिपर केंद्रित लमही के विशेषांक ने … Continue reading →
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शिवमूर्ति उत्पादकता के कहानीकार नहीं हैं। वह रचनात्मक अर्थ में विरल कहानीकार हैं तथा लेखन और प्रतिष्ठा के अनुपातिक संदर्भ में गुलेरी का प्रतिनिधित्व करते हैं। लेप में तर्पण को औपन्यासिक कृति कहा गया है। आकार-प्रकार से यह सही लग … Continue reading →
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तर्पण भारतीय समाज में सहस्राब्दियों से शोषित, दलित और उत्पीड़ित समुदाय के प्रतिरोध एवं परिवर्तन की कथा है। इसमें एक तरफ कई-कई हजार वर्षों के दुःख, अभाव और अत्याचार का सनातन यथार्थ है तो दूसरी तरफ दलितों के स्वप्न, संघर्ष … Continue reading →
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किस्सागोई वाच्य-श्रवण विधा से निकलकर कथा-कहानी लेखन और पाठन परंपरा में प्रवेशित एवं संस्कारित हुई। व्यापकता और स्थिरता में वृद्धि हुई। राजा-रानी और हाथी-घोड़े के पटल को त्याग कथा-साहित्य ने एक ठोस और मुकम्मल जमीन तलाश किया। परी कथाओं के … Continue reading →
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अक्सर देखने में आता है कि स्त्रियों से संबंधित समस्याओं पर लेखिकाएं ही ज्यादा हिस्सेदारी निभाती हैं और वे स्त्रियों से संबंधित लेखन करते-करते इसे अपना रचना-धर्म बना लेती हैं। और इसीलिए हमारे देश का एक बड़ा साहित्यिक वर्ग पूछता … Continue reading →
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” त्रिशूल’ कहानी पत्रिका ‘हंस’ के अगस्त व सितम्बर 93 के अंको में प्रकाशित हुआ था। पुस्तक रूप में यह राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली से 1995 में प्रकाशित हुआ। उपन्यास के सम्बन्ध में इसके ब्लर्ब में कहा गया है कि … Continue reading →
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त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका ‘मंच’ का प्रवेशांक कथाकार शिवमूर्ति के जीवन और रचनाओं पर केन्द्रित है। शिवमूर्ति द्वारा लिखे गये किसान जीवन पर आधारित उपन्यास ‘आखिरी छलांग’ पर प्रसिद्ध आलोचक डा. विश्वनाथ त्रिपाठी का एक मूल्यांकन इस अंक में प्रकाशित है। … Continue reading →
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