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Shivmurti
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समीक्षा

ख्वाजा, ओ मेरे पीर…(ओमप्रकाश ‌तिवारी)

कहानी मैं सबसे पहले पढ़ जाता था। किताब खरीदने के बाद मेरी निगाहें यदि उसमें कुछ खोजतीं थीं तो केवल कहानी। कविताएं भी आकर्षित करती थी लेकिन अधिकतर समझ में नहीं आती थीं इसलिए उन्हें पढ़ने में रुचि नहीं होती … Continue reading →

समीक्षा

देसवा होई गवा सुखारी हम भिखारी रहि गये : (ओमप्रकाश तिवारी)

कथाकार शिवमूर्ति का उपन्यास  “आखिरी छलांग”  पढने के बाद मन में उठे कुछ विचार – हिंदी के कहानीकारों और कवियों का यदि सर्वे किया जाए तो पाया जाएगा कि अधिकतर रचनाकार गांव की पृष्ठ भूमिसे हैं या थे। लेकिन इसी … Continue reading →

समीक्षा

शिवमूर्ति के यहाँ कर्ता और कहनहारे का फ़र्क मिट जाता है : (विवेक मिश्र)

हमारे समय के बेहद ज़रूरी किस्सागो शिवमूर्ति जी पर लिखा विवेक मिश्र का यह आलेख लमही पत्रिका के शिवमूर्ति अंक में छपा है. अपनी मँड़ईया के ‘शिव’ राजा एक रचना, उसका रचनाकार और उस रचनाकार का जीवनवृत्त बाहर से देखने … Continue reading →

समीक्षा

”प्रेमचंद की कहानियॉं किस्सागोई का ….” : (डॉ.ओम निश्चल)

।। शिवमूर्ति का वशीकरण और ‘लमही‘ ।।   मूलत: कथा साहित्य में प्रेमचंद के उच्चादर्शों को लेकर स्थापित लमही नेअपने अब तक की साहित्यकारिता में अनेक विशेषांक और साधारणांकसंजोए हैं, किन्तु हाल ही में ग्रामीण पृष्ठ भूमि के अनूठे कथाकार शिवमूर्तिपर केंद्रित लमही के विशेषांक ने … Continue reading →

समीक्षा

कहानी के फार्मेट में तर्पण : (प्रेम शशांक)

शिवमूर्ति उत्पादकता के कहानीकार नहीं हैं। वह रचनात्मक अर्थ में विरल कहानीकार हैं तथा लेखन और प्रतिष्ठा के अनुपातिक संदर्भ में गुलेरी का प्रतिनिधित्व करते हैं। लेप में तर्पण को औपन्यासिक कृति कहा गया है। आकार-प्रकार से यह सही लग … Continue reading →

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उपन्यास तर्पण पर एक टिप्पणीकार के विचारः (प्रेम शशांक)

तर्पण भारतीय समाज में सहस्राब्दियों से शोषित, दलित और उत्पीड़ित समुदाय के प्रतिरोध एवं परिवर्तन की कथा है। इसमें एक तरफ कई-कई हजार वर्षों के दुःख, अभाव और अत्याचार का सनातन यथार्थ है तो दूसरी तरफ दलितों के स्वप्न, संघर्ष … Continue reading →

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लेखकों, आलोचकों ने मिलकर भगाया पाठकों को : (शिवमूर्ति)

किस्सागोई  वाच्य-श्रवण विधा से निकलकर कथा-कहानी लेखन और पाठन परंपरा में प्रवेशित एवं संस्कारित हुई। व्यापकता और स्थिरता में वृद्धि हुई। राजा-रानी और हाथी-घोड़े के पटल को त्याग कथा-साहित्य ने एक ठोस और मुकम्मल जमीन तलाश किया। परी कथाओं के … Continue reading →

समीक्षा

केशर कस्तूरीः (शिवमूर्ति)

अक्सर देखने में आता है कि स्त्रियों से संबंधित समस्याओं पर लेखिकाएं ही ज्यादा हिस्सेदारी निभाती हैं और वे स्त्रियों से संबंधित लेखन करते-करते इसे अपना रचना-धर्म बना लेती हैं। और इसीलिए हमारे देश का एक बड़ा साहित्यिक वर्ग पूछता … Continue reading →

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त्रिशूल (उपन्यास ) का एक अंश

” त्रिशूल’ कहानी पत्रिका ‘हंस’ के अगस्त व सितम्बर 93 के अंको में प्रकाशित हुआ था। पुस्तक रूप में यह राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली से 1995 में प्रकाशित हुआ।  उपन्यास के सम्बन्ध में इसके ब्लर्ब में कहा गया है कि … Continue reading →

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मरण-फांस से पार जाने की ‘छलांग’ : (डा. विश्वनाथ त्रिपाठी)

त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका ‘मंच’ का प्रवेशांक कथाकार शिवमूर्ति के जीवन और रचनाओं पर केन्द्रित है। शिवमूर्ति द्वारा लिखे गये किसान जीवन पर आधारित उपन्यास ‘आखिरी छलांग’ पर प्रसिद्ध आलोचक डा. विश्वनाथ त्रिपाठी का एक मूल्यांकन इस अंक में प्रकाशित है। … Continue reading →

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    Upanyas - Tarpan - by Shivmurti

    lamhi ka Shivmurti per Kendrit Vishesank

    Srijan Ka Rasayan by Shivmurti

    Upnyas - Trishul - by Shivmurti

    Tiriya Charittar story by Shivmurti

    Samved ka Shivmurti per Kendrit Vishesank

    Mere Sakshatkar

    Manch ka Shivmurti per Kendrit Vishesank

    kannad translation of 'Aaakhari Chhalang'

    Kasai Khana - Kahaniyo ka Bangla Anuvad

    Kesar Kasturi by Shivmurti

    Dwitiya Sanskalan - Kesar Kasturi (Shivmurti)

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