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लेख

‘गोदान’ के पाठ में संशोधन की जरूरत’ : (शिवमूर्ति)

31 जुलाई 2014 को प्रेमचंद की स्मृति में हिंदी संस्थान लखनऊ द्वारा मुझे ‘गोदान’ पर बोलने के लिए आमंत्रित किया गया तो खुशी हुई कि इसी के चलते इस कालजयी उपन्यास को दोबारा पढ़ने का अवसर मिलेगा। बी.ए. करने के दौरान … Continue reading →

लेख

संतन को कहा सीकरी : (शिवमूर्ति)

पहले पहल ‘अपराध’ से जाना संजीव भाई को। सारिका काजनवरी-८० का अंक आया था। उसमें ‘अपराध’ प्रथम पुरस्कृतकहानी के रूप में प्रकाशित हुई थी। परिचय में लिखा था, जन्मसुल्तानपुर में। अरे, मेरे अपने जिले का लड़का। चेहरे-मोहरेसे भी मेरे जैसा … Continue reading →

लेख

समकालीन हिंदी कहानीः दिशा और उसकी चुनौतियां : (शिवमूर्ति)

मैं पहले भी कह चुका हूं कि आलोचक की भूमिका माली की होती है, न कि लकड़हारे की। उसे बगीचे के पौधों की काट-छांट का अधिकार है, न कि उनका सिर कलम करने का। किंतु आज के अधिकांश आलोचक माली … Continue reading →

लेख

जीने का शिवमूर्तियाना अंदाज : (संजीव)

      शिवमूर्ति पर लिखा यह आलेख नया ज्ञानोदय व मंच के अंको में पूर्व प्रकाशित है। पाठकों के लिए पुन: संयोजित।                                                         शिवमूर्ति यानी शिव की मूर्ति!   अनेकानेक नंदियों-भृंगियों भूतों-पिशाचों डाकिनियों-शाकिनियों रोगियों-अपरिहतों नंगों चंद्रमाओं और परस्पर विरोधी मिथकों के जटाजूट … Continue reading →

लेख

अभी तो हम मुस्तैद पिछलग्गू भी नहीं हैं : (शिवमूर्ति)

यह आलेख समकालीन जनमत (१६-३० नवम्बर) १९९४ में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था। पाठकों हेतु प्रस्तुत- रामजी राय अपने आलेख में जिसे दलित उभार करते हैं उसके बीज हमारे समाज में प्रेमचंद के जमाने से हैं। ‘गोदान’ के सिलिया प्रसंग … Continue reading →

लेख

साम्प्रादायिकता पर किये गए लेखन

लेख

मंच

मंच पत्रिका ने अपने जनवरी-मार्च २०११ के अंक को मेरे ऊपर केन्द्रित किया है, इसे आप निम्न वेबसाइट पर विस्तृत देख सकते हैं. वेबसाइट-WWW.MANCHPRAKASHAN.COM मंच पत्रिका का जनवरी – मार्च २०११ अंक मेरे उपर केन्द्रित था. ब्लॉग के पाठकों के … Continue reading →

लेख

ब्लॉग के पाठकों के लिए

ब्लॉग के पाठकों के लिए इंडिया टुडे में प्रकाशित मेरा विवरण

लेख

मृत्यु का स्वागत : (शिवमूर्ति)

रचना प्रक्रिया तथा रचना के आलम्बों पर शीघ्र प्रकाश्य पुस्तक ‘समय ही असली स्रष्टा है का एक अंश चली गयी माँ। कितना ऊँचा नीचा समय देखा जिंदगी में लेकिन जीवन जीने का उत्साह कभी कम नहीं हुआ। ताजिंदगी नास्तिक रही। … Continue reading →

लेख

पुरस्कार की आकांक्षा : (शिवमूर्ति)

रचना प्रक्रिया तथा रचना के आलम्बों पर लिखी जा रही पुस्तक ‘समय ही असली स्रष्टा है का एक अंश –   पिछले दिनो हर साल की तरह सरकारी साहित्यिक पुरस्कारों की घोषणा हुई। पुरस्कृत लोगों का नाम पढक़र लोग पूछने … Continue reading →

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