शिवमूर्ति की कहानियों पर वरिष्ट आलोचक वीरेन्द्र मोहन के आलेख के कुछ अंश
ब्लाग के पाठकों के लिए शिवमूर्ति की कहानियों पर वरिष्ट आलोचक वीरेन्द्र मोहन के आलेख के कुछ अंश-
शिवमूर्ति की कहानियाँ भारतीय ग्राम समाज व्यवस्था के भीतर विकसित हो रहे नये संरचनात्मक सम्बन्धों के साथ पारम्परिक संरचना के सम्बन्ध सूत्रों को आधार बना कर नये वैषम्य और नये अन्तर्विरोधों को खोजने का उपक्रम करती हैं। भारतीय समाज की ग्रामीण संरचना में वर्ण, जाति और सम्प्रदाय के तत्व गहरे तक बद्धमूल हैं। उनमें परस्पर विरोध,..संघर्ष और शत्रुता के बीज विघटनकारी शक्तियों द्वारा बोय जाते रहे हैं। वहीं विघटनकारी शक्तियाँ नयी परिस्थितियों में नया रूप धारण करने की तरकीब खोज लेती हैं। इस ग्राम समाज में स्त्री और बर्बर स्थितियों से गुजरना पड़ा है, शिवमूर्ति की कहानियाँ उनका खुलासा करती हैं। तनिक भी अतिरंजित न होने के बावजूद वे अविश्वसनीय भी लग सकती हैं कि मनुष्य समाज इतना निर्मम, निष्करूण और बर्बर तक हो सकता है, रहम इतना मर सकता है। पर ऐसा होता रहा है, यह सच्चाई भी है।
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