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Monthly Archives: August 2014
ख्वाजा, ओ मेरे पीर…(ओमप्रकाश तिवारी)
कहानी मैं सबसे पहले पढ़ जाता था। किताब खरीदने के बाद मेरी निगाहें यदि उसमें कुछ खोजतीं थीं तो केवल कहानी। कविताएं भी आकर्षित करती थी लेकिन अधिकतर समझ में नहीं आती थीं इसलिए उन्हें पढ़ने में रुचि नहीं होती … Continue reading
देसवा होई गवा सुखारी हम भिखारी रहि गये : (ओमप्रकाश तिवारी)
कथाकार शिवमूर्ति का उपन्यास “आखिरी छलांग” पढने के बाद मन में उठे कुछ विचार – हिंदी के कहानीकारों और कवियों का यदि सर्वे किया जाए तो पाया जाएगा कि अधिकतर रचनाकार गांव की पृष्ठ भूमिसे हैं या थे। लेकिन इसी … Continue reading
हमारे गांव और किसान
अपने समय में हिंदी के सर्वाधिक लोकप्रिय रहे साप्ताहिक पत्र धर्मयुग में ग्रामीण संवेदना के प्रखर कथाकर शिवमूर्ति की लंबी कहानी कसाईबाड़ा छपी तो सारे देश में धूम मच गई थी,क्योंकि इस कहानी में कथाकार ने आपातकाल के दौरान गांव … Continue reading
अनेकान्त : (डॉ. आईदान सिंह भाटी)
शिवमूर्ति जी के साथ मेरी पहली भेंट राजस्थान के कस्बे श्रीडूंगरगढ में हुई थी, जहां संभवतः राजस्थान साहित्य अकादमी का आंचलिक समारोह था और राष्ट्रभाषा प्रचार समिति उसकी आयोजक थी। कवि श्याम महर्षि के साथ आयोजन सहयोगी थे चेतन स्वामी … Continue reading
शिवमूर्ति के यहाँ कर्ता और कहनहारे का फ़र्क मिट जाता है : (विवेक मिश्र)
हमारे समय के बेहद ज़रूरी किस्सागो शिवमूर्ति जी पर लिखा विवेक मिश्र का यह आलेख लमही पत्रिका के शिवमूर्ति अंक में छपा है. अपनी मँड़ईया के ‘शिव’ राजा एक रचना, उसका रचनाकार और उस रचनाकार का जीवनवृत्त बाहर से देखने … Continue reading
”प्रेमचंद की कहानियॉं किस्सागोई का ….” : (डॉ.ओम निश्चल)
।। शिवमूर्ति का वशीकरण और ‘लमही‘ ।। मूलत: कथा साहित्य में प्रेमचंद के उच्चादर्शों को लेकर स्थापित लमही नेअपने अब तक की साहित्यकारिता में अनेक विशेषांक और साधारणांकसंजोए हैं, किन्तु हाल ही में ग्रामीण पृष्ठ भूमि के अनूठे कथाकार शिवमूर्तिपर केंद्रित लमही के विशेषांक ने … Continue reading
तुम सब कसाई हो और ये सारा गाँव “कसाईबाड़ा” है : (सुनील दत्ता)
आजnbsp; के वर्तमान अंधाधुंध आधुनिकीकरण के परिदृश्य में पैसा और व्यवस्था ने समाज में एक ऐसी दौड़ शुरू करा दी है जहाँ समाज के मध्यम वर्ग का तबका अपना स्वाभिमान, सम्मान, ईमान तक बेच डालने में हिचक महसूस नहीं कर … Continue reading